-निरंकार देव सेवक
दूर देश से आई तितली
चंचल पंख हिलाती
फूल-फूल पर
कली-कली पर
इतराती-इठलाती
यह सुन्दर फूलों की रानी
धुन की मस्त दीवानी
हरे-भरे उपवन में आई
करने को मनमानी
कितने सुन्दर पर हैं इसके
जगमग रंग-रंगीले
लाल, हरे, बैंजनी, वसन्ती
काले, नीले, पीले
कहाँ-कहाँ से फूलों के रंग
चुरा-चुरा कर लाई
आते ही इसने उपवन में
कैसी धूम मचाई
डाल-डाल पर, पात-पात पर
यह उड़ती फिरती है,
कभी ख़ूब ऊँची चढ़ जाती है
फिर नीचे गिरती है
कभी फूल के रस-पराग पर
रुककर जी बहलाती
कभी कली पर बैठ न जाने
गुप-चुप क्या कह जाती
-निरंकार देव सेवक
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