- डा० जगदीश व्योम
मेरा भी तो मन करता हैमैं भी पढ़ने जाऊँ
अच्छे कपड़े पहन
पीठ पर बस्ता भी लटकाऊँ
क्यों अम्मा औरों के घर
झाडू-पोंछा करती है
बर्तन मलती, कपड़े धोती
पानी भी भरती है
अम्मा कहती रोज
`बीनकर कूड़ा-कचरा लाओ'
लेकिन मेरा मन कहता है
`अम्मा मुझे पढाओ'
कल्लन कल बोला-
बच्चू! मत देखो ऐसे सपने
दूर बहुत है चाँद
हाथ हैं छोटे-छोटे अपने
लेकिन मैंने सुना
हमारे लिए बहुत कुछ आता
हमें नहीं मिलता
रस्ते में कोई चट कर जाता
डौली कहती है
बच्चों की बहुत किताबें छपती
सजी- धजी दूकानों में
शीशे के भीतर रहतीं
मिल पातीं यदि हमें किताबें
सुन्दर चित्रों वाली
फिर तो अपनी भी यूँ ही
होती कुछ बात निराली।।
Bahut Pyari Rachana.
ReplyDeleteTRILOK SINGH THAKURELA,
Bunglow No. L- 99,
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(RAJASTHAN )