Sunday 31 December 2017

भैयनलाल का अँगूँठा

मुँह में बार-बार दे लेते
भैयनलाल अँगूठा जी

अभी-अभी था मुंह से खींचा
था गीला तो साफ किया
पहले तो डाँटा था मां ने
फिर बोली जा माफ किया
अब बेटे मुँह में मत देना
गन्दा-गन्दा जूठा जी

चुलबुल नटखट भैयन को पर
मजा अँगूठे में आता
लाख निकालो मुँह से बाहर
फिर-फिर से भीतर जाता
झूठ मूठ गुस्सा हो मां ने
एक बार फिर खींचा जी

अब तो मचले, रोए भैयन
माँ ने की हुड़कातानी
रोका क्यों मस्ती करने से
क्यों रोका मनमानी से
रोकर बोले चखो अँगूठा
स्वाद शहद से मीठा जी

-प्रभुदयाल श्रीवास्तव

2 comments:

  1. अब तो मचले रोये भैयन,
    माँ की हुड़का तानी से।
    रोका क्यों मस्ती करने से,
    रोक क्यों मनमानी से।
    रोकर बोले चखो अंगूठा,
    स्वाद शहद से मीठाजी।

    मैंने अंतिम पद सुधार दिया है।
    प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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  2. हमनें मजे उड़ाये

    लगी हुई थी हम बच्चों को,
    बहुत दिनों से आस।
    दादा दादी की शादी के,
    होंगे साल पचास।

    स्वर्ण जयंती जल्दी होगी,
    हम सोचें मुस्काएं।
    कब दादा को दूल्हा दादी,
    जी को दुल्हन बनायें।

    और शीघ्र ही प्यारा प्यारा,
    सा शुभ दिन वह आया।
    दादा दादी को जब हमनें,
    नख शिख पूर्ण सजाया।

    कुरता चमक रहा दादा का,
    दादी जी की साड़ी।
    दोनों की जोड़ी है सचमुच,
    सबसे प्यारी न्यारी।

    धूम धड़ाका हो हल्ला कर,
    हमने मजे उड़ाये।
    मित्र सभी हम सब बच्चों के,
    दावत खाने आये।

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