जल्दी जगने लगे आजकल
दिन गुल्लू के गाँव में
और दोपहर में सुस्ताने लगे
नीम की छाँव में
बाहर निकल
किताबें अब तो
झांक रही हैं झोले से
गुल्लू भैया जान बूझ कर
बने हुए हैं भोले से
डर है चित ना हो जाएं वह
इम्तेहान के दाँव में
मैच आ रहा
है टीवी पर
मन उसमे ही डोल रहा
खुला हुआ पन्ना हिस्ट्री का
गुल्लू से कुछ बोल रहा
तारीखें सब युद्ध कर रही हैं
अब मारे ताव में
सोते ही
बजने लगती है
रोज घड़ी की घंटी
सर के ऊपर तनी हुई है
इम्तेहान की संटी
बेड पर गुल्लू बाबू बैठे
कम्बल डाले पाँव में
-प्रदीप शुक्ल
दिन गुल्लू के गाँव में
और दोपहर में सुस्ताने लगे
नीम की छाँव में
बाहर निकल
किताबें अब तो
झांक रही हैं झोले से
गुल्लू भैया जान बूझ कर
बने हुए हैं भोले से
डर है चित ना हो जाएं वह
इम्तेहान के दाँव में
मैच आ रहा
है टीवी पर
मन उसमे ही डोल रहा
खुला हुआ पन्ना हिस्ट्री का
गुल्लू से कुछ बोल रहा
तारीखें सब युद्ध कर रही हैं
अब मारे ताव में
सोते ही
बजने लगती है
रोज घड़ी की घंटी
सर के ऊपर तनी हुई है
इम्तेहान की संटी
बेड पर गुल्लू बाबू बैठे
कम्बल डाले पाँव में
-प्रदीप शुक्ल
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