Wednesday 28 February 2018

मन के भोले-भाले बादल

झब्बर-झब्बर बालों वाले
गुब्बारे से गालों वाले
लगे दौड़ने आसमान में
गुब्बारे से काले बादल

कुछ जोकर-से तोंद फुलाए
कुछ हाथी-से सूँड़ उठाए
कुछ ऊँटों-से कूबड़ वाले
कुछ परियों-से पंख लगाए
आपस में टकराते रह-रह
शेरों से मतवाले बादल

कुछ तो लगते हैं तूफ़ानी
कुछ रह-रह करते शैतानी
कुछ अपने थैलों से चुपके
रह-रह-रह बरसाते पानी
नहीं किसी की सुनते कुछ भी
ढोलक-ढोल बजाते बादल

रह-रहकर छत पर आ जाते
फिर चुपके ऊपर उड़ जाते
कभी-कभी जि़द्दी बन करके
बाढ़ नदी-नालों में लाते
फिर भी लगते बहुत भले हैं
मन के भोले-भाले बादल


-कल्पनाथ सिंह



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